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श्रीमद् भगवद्गीता सार

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  भगवद् गीता, भारतीय धर्म की प्रमुख पुराणों में से एक है और इसे 'महाभारत' युद्ध के एक अद्याय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश दिए जाते हैं और यह उपदेश समर्पित हैं योग, ज्ञान, भक्ति और कर्म के मार्ग पर चलने के लिए। यहां पर भगवद् गीता का सार दिया गया है: • भगवान कहते हैं कि आत्मा अनन्त, अविनाशी और नश्वर है। शरीर के माध्यम से उसका नाश नहीं होता है। • जीवन में सुख और दुःख की परिस्थितियाँ सामान्य हैं। मनुष्य को इन्हें सहने की क्षमता रखनी चाहिए और समता के साथ उनका सामना करना चाहिए। • सच्ची प्रकृति को पहचानने के लिए ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक है। आत्मा और परमात्मा में अद्वितीयता को समझने के लिए ज्ञान आवश्यक है। • भगवान कहते हैं कि उन्हें सब कुछ पता है और वे सम्पूर्ण विश्व के अधिपति हैं। उन्हें ज्ञान के साथ सबको चलाने का अधिकार है। • समर्पण के माध्यम से मनुष्य ईश्वर से संबंध स्थापित कर सकता है। ईश्वर के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखकर और उसके आदेशों का पालन करके जीवन को समृद्ध बनाया जा सकता है। • योग के माध्यम से मन, शरीर और आत्मा को एकीकृत

कछुआ और खरगोश की कहानी

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 एक बार की बात है, गांव में एक छोटा सा कचुए रहता था। वह बहुत ही नतखट और खुशमिजाज कचुआ था। उसके पास दोस्त बहुत थे, जो उसके साथ खेलते और मस्ती करते थे। एक दिन, वे सभी दोस्त नदी के किनारे चले गए। उन्हें देखते ही कचुए को बहुत खुशी हुई। वह बहुत उत्साहित हो गया और चिड़ियों की तरह उड़ने लगा। उसके दोस्त उसे देखते ही हैरान रह गए। वे कचुए से पूछने लगे, "तुम कैसे उड़ रहे हो? क्या यह कोई नई शक्ति है जो हमें नहीं पता?" कचुए ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, "नहीं, दोस्तों, यह कोई नई शक्ति नहीं है। मैं यह उड़ रहा हूँ क्योंकि मुझे विश्वास है कि मैं उड़ सकता हूँ।" दोस्तों ने उसे हंसते हुए कहा, "तुम कचुए हो और कचुए तो सिर्फ पानी में ही तैर सकते हैं। वाकई, तुम खुद को अच्छी तरह से धोखा नहीं दे रहे हो? बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में एक खरगोश और एक कछुआ अपने आपसी दोस्त बन गए। वे दोनों बहुत ही प्यार से रहते थे और हमेशा साथ में खेलते थे। एक दिन, खरगोश ने कछुए से कहा, "मेरे प्यारे दोस्त, हमें आज खेलने के लिए कुछ नया स्थान ढूंढना चाहिए। हमारा जीवन और खुशहाल हो जाएगा।"