एक ढ़ोल की प्रेरणादायक कहानी प्रेरणादायक कहानी

 एक ढ़ोल की कहानी

 

बहुत समय पहले की बात है दो गाव थे, पहले गाव का नाम था मणिनगर गाव ओर दूसरे गाव का नाम था गुलबईटेकरा गाव दोनों ही गाव मे पानी की बहुत बड़ी समस्या थी, जिसका हल दोनों ही गाव के पास नहीं था तो एक दिन दोनों गाव के मुखिया एक दूसरे से बात कर रहे थे 

मणिनगर गाव का मुखिया : भाई हमारे यहा पानी की बहुत बड़ी समस्या है मयुषी से  कहता है 

गुलबईटेकरा गाव का मुखिया : भाई समस्या तो हमारे यहा भी है, क्या कर सकते है भाई आप ही बताइये ये भी दुखी मन से कहता है ।

 

 

मणिनगर गाव का मुखिया : भाई मेने सुना है की एक ओर गाव है, राजकोट गाव वह भी अपने जेसा हाल था लेकिन उनके पास एक चमत्कारी ढ़ोल है जिसको बजाने से उस गाव मे बरीश हो जाती है ओर वो हर साल यही करते है जिससे उनके गाव मे अब एसी बारिश की समस्या नहीं होती है , ओर ये भी सुना है भाई ये ढ़ोल उनको किसी चमत्कारी बाबा ने दिया है ओर ये ढ़ोल सही मे बहुत चमत्कारी है  

 

गुलबईटेकरा गाव का मुखिया : भाई एसा है लेकिन मे ये सब नहीं मानता ये सब बकवास होता है मेरी मानो तो आप भी ये सब बातो मे टाइम मत बर्बाद करो, ( गुलबईटेकरा गाव का मुखिया ने थोड़ी चालाकी करने का विचार किया सोचा मे मणिनगर गाव के मुखिया को झूठ बोल देता हु ओर चुपके से राजकोट गाव से ढ़ोल लेके आऊँगा ओर अपने गाव मे बारिश कर लूँगा जिससे मणिनगर गाव मे बारिश न होके मेरे गुलबईटेकरा गाव मे बारिश हो जाएगी )

फिर क्या गुलबईटेकरा गाव का मुखिया छुपके से ढ़ोल ले आया ओर अपने गाव मे ढ़ोल बजाना सुरू कर दिया ओर थोड़े समय तक वो ढ़ोल बजाता रहा, लेकिन बारिश नहीं हुई, लेकिन अब उसके हाथ दुखने लगे ओर वो ढ़ोल को नहीं बजा सकता था ओर उसने हार मन ली ओर ढ़ोल बजाना उसने बंद कर दिया ओर बारिश न होने की बजाह से वो गुस्से मे आ गया ओर उसने ढ़ोल को ले जा कर राजकोट गाव मे पटक दिया, ओर कहा राजकोट के मुखिया तुम झूठ बोल रहे थे ये कोई चमत्कारी ढ़ोल नहीं है इससे कोई बारिश नहीं होती है लो आप पकड़ो अपना ढ़ोल मुझे नहीं चाहिए, ओर वो अपने गाव को वापस आ गया  

मणिनगर गाव का मुखिया : गुलबईटेकरा गाव का मुखिया ने कहा तो मुझे भी उसकी बात सही लगती है टाइम क्यू बर्बाद करने का लेकिन अगर मे ढ़ोल ले भी आता हु तो इसमे नुकसान क्या है अभी फ़िलाल मेरे पास ओर कोई तरकीब भी तो नहीं है के जिससे मे अपने गाव के लोगो की समस्या का हल निकाल सकू , मे क्या करू मणिनगर का मुखिया खुदसे सवाल करता है ओर कहता है चलो मे ले ही आता हु, ओर वो राजकोटगाव के मुखिया के पास गया ओर उसने अपने गाव की सारी समस्या के बारे मे राजकोट के मुखिया को बताया, फिर राजकोट के मुखिए को इस बात का जब पता चला तब तुरंत ही राजकोट के मुखिया ने मणिनगर के मुखिया को ढ़ोल दे दिया ओर मणिनगर का मुखिया उस ढ़ोल को अपने गाव लेके आ गया, ओर उसने ढ़ोल को बजाना सुरू किया ओर उसने ये सोच के साथ ढ़ोल को बजाना सुरू किया मे तब तक ढ़ोल बजाऊँगा जब तक बारिश न गिर जाए, ओर उसके अटिल विश्वास से ढ़ोल के बजाने से बारिश भी गिरी ओर मणिनगर के गाव वाले सभी खुश हो कर झूमने लगे 

अब इस बात का पता गुलबाईटेकरा के मुखिया को लगा ओर वो गुस्से से लाल हो गया ओर राजकोट के मुखिए के पास वो पाहुचा ओर राजकोट के मुखिया से कहता है के मणिनगर के मुखिया को कोनसा ढ़ोल दिया जिससे उसके गाव मे बारिश पड़ गई ओर मुझे क्यू नहीं वह ढ़ोल दिया था आपने ,

 

राजकोट गाव का मुखिया : राजकोट के मुखिया ने गुलबईटेकरा के मुखिया से कहा मेने मणिनगर के मुखिया को वही ढ़ोल  दिया था जो मेने आपको दिया था लेकिन आपने हार मन ली थी ओर ढ़ोल को बजाना बंद कर दिया था लेकिन मणिनगर के मुखिया ने हार न मान कर तब तक ढ़ोल बजाया जब तक उसके गाव मे बारिश न पड़ गई इसलिए आज मणिनगर मे ढ़ोल बजाने से बारिश गिरी, क्या समझे गुलबईटेकरा के मुखिया आप, ये बात राजकोट के मुखिया ने गुलबईटेकरा के मुखिया से कही। 

शीख: अगर आप कोई भी काम सच्चे दिल से करो ओर उस पर आपको पूरा विश्वास भी हो, तो आपका वो काम जरूर ही पूरा होता है लेकिन उसके लिए आपको हार नहीं माननी है तब तक ढ़ोल को बजाना है जब तक बारिश न हो जाए 

मे आसा करती हु की संगीता की प्रेरणादायक कहानी आपको पसंद आएगी ।

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